हथेली जो महसूस हो रही है तुम्हें कंधे पर अपने कभी भी बन सकती है मुट्ठी और कस सकती है तुम्हारे गले के चारों ओर ... ... ... चौंको मत ऊँगलियों के दवाब से बदल जाती है दुनिया प्रेम के शब्द गढ़ लेते हैं परिभाषा हिंसा की
हिंदी समय में अर्पण कुमार की रचनाएँ